हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय

 

जीवन-परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ :- मध्य प्रदेश में इटारसी के निकट जमानी नामक स्थान पर हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, 1924 को हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. करने के बाद उन्होंने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया, लेकिन साहित्य सृजन में बाधा का अनुभव करने पर इन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन प्रारम्भ किया। इन्होंने प्रकाशक एवं सम्पादक के तौर पर जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का स्वयं सम्पादन और प्रकाशन किया, जो बाद में आर्थिक कारणों से बन्द हो गई। हरिशंकर परसाई जी ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘धर्मयुग’ तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते रहे। 10 अगस्त, 1995 को इस यशस्वी साहित्यकार का देहावसान हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ :- व्यंग्यप्रधान निबन्धों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले परसाई जी की दृष्टि लेखन में बड़ी सूक्ष्मता के साथ उतरती थी। उनके हृदय में साहित्य सेवा के प्रति कृतज्ञ भाग विद्यमान था। साहित्य-सेवा के लिए परसाई जी ने नौकरी को भी त्याग दिया। काफी समय तक आर्थिक विषमताओं को झेलते हुए भी ये ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन एवं सम्पादन करते रहे। पाठकों के लिए हरिशंकर परसाई एक जाने-माने और लोकप्रिय लेखक हैं। कृतियाँ परसाई जी ने अनेक विषयों पर रचनाएँ लिखीं। इनकी रचनाएँ देश की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। परसाई जी ने अपनी कहानियों, उपन्यासों तथा निबन्धों से व्यक्ति और समाज की कमजोरियों, विसर्गतियों और आडम्बरपूर्ण जीवन पर गहरी चोट की हैं। 

 रचनाएँ
परसाई जी की रचनाओं का उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है। |
(i) कहानी-संग्रह हँसते हैं, रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।
(ii) उपन्यास रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज।
(iii) निबन्-संग्रह तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमान की परत, पगडण्डियों का जमाना, सदाचार की ताबीज, शिकायत मुझे भी है, और अन्त में।

भाषा शैली :- परसाई जी ने क्लिष्ट व गम्भीर भाषा की अपेक्षा व्यावहारिक अर्थात् सामान्य बोलचाल की भाषा को अपनाया, जिसके कारण इनकी भाषा में सहजता, सरलता व प्रवाहमयता का गुण दिखाई देता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया है, जिससे रचना में रोचकता का पुट आ गया है। इस रोचकता को बनाने के लिए परसाई जी ने उर्दू व अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों तथा कहावतों एवं मुहावरों का बेहद सहजता के साथ प्रयोग किया है, जिसने इनके कथ्य की प्रभावशीलता को दोगुना कर दिया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्यतः व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया और। उसके माध्यम से समाज की विभिन्न कुरीतियों पर करारे व्यंग्य किए। हिन्दी-साहित्य में स्थान हरिशंकर परसाई जी हिन्दी-साहित्य के एक प्रतिष्ठित व्यंग्य लेखक थे। मौलिक एवं अर्थपूर्ण व्यंग्यों की रचना में परसाई जी सिद्धहस्त थे। हास्य एवं व्यंग्यप्रधान निबन्धों की रचना करके इन्होंने हिन्दी-साहित्य में एक विशिष्ट अभाव की पूर्ति की। इनके व्यंग्यों में समाज एवं व्यक्ति की कमज़ोरियों पर तीखा प्रहार मिलता है। आधुनिक युग के व्यंग्यकारों में उनका नाम सदैव स्मरणीय रहेगा।